एक बार एक संत के पास एक गृहस्थ जाकर प्रश्न किया कि – “सुखी पारिवारिक जीवन का राज क्या है ?”संत ने गृहस्थ से कहा इसका उत्तर मै तुम्हे कल दूंगा , तब तक के लिए तुम मेरे ही साथ मेरी कुटिया पर ही रहो | गृहस्थ ने भी संत की बात मान ली , और वो कुटिया में ही रुक गया |संत उन दिनों उपनिषद का अध्ययन कर रहे थे , कुछ देर बाद उन्होंने अपनी पत्नी को पुकारा उस समय दिन ही था और पुकार कर कहा – श्री मति जी जरा दीपक जला कर देना | संत की पत्नी ने बिना कुछ पूछे दीपक जलाकर कर संत को de दिया |कुछ देर के बाद संत ने दो गिलास शर्बत बनाकर लाने के लिए कहा , संत की पत्नी ने दो गिलास शर्बत बना कर लाई |
संत ने एक गिलास शर्बत उस गृहस्थ को दिया और एक गिलास स्वयं पीने लगे | पत्नी ने संत से पूछा – शर्बत मीठा है ? तो तो संत ने उत्तर दिया कि – शर्बत बहुत अच्छा और मीठा है , जबकि शर्बत में भूलवश पत्नी ने शकर की जगह नमक डाल दिया था |
रात के भोजन के समय संत और गृहस्थ एक साथ बैठकर भोजन कर रहे थे ? संत की पत्नी ने संत से पूछा कि – दाल में नमक ठीक है ? तो संत ने उत्तर दिया कि – दाल में नमक ठीक है तो संत ने कहा दाल में नमक ठीक है और दाल बहुत अच्छी बनी है , जबकि दाल में नमक ही नहीं पड़ा था | अगले दिन संत गृहस्थ के घर चलने को तैयार हुए , तो गृहस्थ ने संत से पूछा – आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया |
संत ने कहा कि – आपके प्रश्न का उत्तर तो मैंने कल ही दे दिया था , कल जब मैंने दिन में पत्नी से दीपक जलाने को कहा तो मेरी पत्नी ने बिना टिप्पणी किये दीपक जला कर दिया , फिर मैंने शर्बत लाने के लिए कहा तब मेरी पत्नी ने शकर के स्थान पर नमक का शर्बत बनाकर लाई, पत्नी के पूछे जाने पर मैंने शरबत को मीठा बताया ,और कल रात के भोजन में दाल में नमक न डालने पर भी पूछे जाने पर नमक ठीक है बताया |
अच्छे गृहस्थ का यही राज है कि – कोई किसी के बारे में टिप्पणी नहीं करता , संत का उत्तर पाकर गृहस्थ संत के चरणों में नत होकर गदगद मन से अपने घर चला गया |
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